पदार्थों का पृथक्करण class 6th science notes in Hindi

Class 6th Geography Notes in Hindi

3. पदार्थों का पृथक्करण

Textbook  NCERT
Class Class – 6th
Subject  SCIENCE
chapter  Chapter – 3
Chapter Name  पदार्थों का पृथक्करण
Medium HINDI 

मिश्रण :- 

“मिश्रण” (Mixture) का अर्थ है ,दो या अधिक पदार्थों का एक साथ मिलना, जिसमें प्रत्येक पदार्थ अपनी मूल रासायनिक पहचान बनाए रखता है।

मिश्रण के प्रकार : – 

मिश्रण दो प्रकार के होते है । 

  1. समांगी मिश्रण (Homogeneous Mixture): –  यह वह मिश्रण होता है जिसमें सभी पदार्थ समान रूप से फैले होते हैं और मिश्रण के प्रत्येक भाग में एक समान संरचना होती है। जैसे कि नमक का घोल, चीनी का घोल, आदि। इन मिश्रण के प्रत्येक भाग में पदार्थों की समान मात्रा मे घुले होते हैं । 

  2. विषमांगी मिश्रण (Heterogeneous Mixture): –  इसमें विभिन्न पदार्थों को स्पष्ट रूप से अलग-अलग हिस्सों में देखा जा सकता है। इसमें मिश्रण के विभिन्न भागों की संरचना अलग-अलग हो सकती है। जैसे कि रेत और पानी, मिट्टी और पानी, आदि। इन मिश्रणों के प्रत्येक भाग में पदार्थों की आसमान मात्रा घुले होते हैं । 


पृथक्करण की विधियाँ 

1. हस्त चयन : –

“हस्त चयन” (Handpicking) एक सामान्य विधि है जिसका उपयोग विषमांगी मिश्रण से बड़े, दृश्यमान घटकों को हाथ से अलग करने के लिए किया जाता है। इस विधि का उपयोग तब किया जाता है जब मिश्रण में घटकों का आकार, रंग, या कोई अन्य भौतिक विशेषता अलग होती है और उन्हें आसानी से हाथों से अलग किया जा सकता है।

उदाहरण:

  1. चावल से कंकड़ हटाना: यदि चावल में कंकड़ मिल गए हों, तो हम उन्हें हस्त चयन विधि द्वरा अलग कर सकते हैं।
  2. दलिया से तिनके अलग करना: गेहूं या किसी अन्य अनाज से तिनके और बड़े अपशिष्ट पदार्थ हाथ से चुने जाते हैं यानि हस्त चयन विधि का प्रयोग किया जाता हैं । 

हस्त चयन विधि की विशेषताएँ:

  • यह सरल और सस्ती विधि है।
  • इसका उपयोग तब किया जाता हैं जब मिश्रण के घटक आकार में बड़े हों और उन्हें आसानी से पहचाना जा सके।
  • यह विधि केवल छोटे पैमाने पर उपयोगी है, बड़े पैमाने पर या बहुत छोटे घटकों के लिए यह विधि कारगर नहीं होती है।

2. थ्रेशिंग :- 

सूखे पौधों की डंडियों से अन्नकणों अथवा अनाज को पृथक करने के प्रक्रम को थ्रेशिंग कहते हैं । 

थ्रेशिंग (Threshing) का उपयोग फसलों से अनाज या बीज को अलग करने के लिए किया जाता है। इस प्रक्रिया में, कटाई के बाद पौधों के तनों और बाली (ear) से अनाज को अलग किया जाता है।

थ्रेशिंग की विधियाँ: – 

  1. मैन्युअल थ्रेशिंग: –  इसमें किसान अपने हाथों या लकड़ी के डंडे का उपयोग करके फसलों की बालियों को जमीन पर मारते हैं जिससे अनाज बाहर निकल जाता है। यह विधि पारंपरिक है और छोटे पैमाने पर उपयोग होती है। कभी कभी थ्रेशिंग का कार्य बैलों की सहायता से भी किया जाता है । 

  2. मशीन द्वारा थ्रेशिंग: –  आजकल मशीनों का उपयोग करके थ्रेशिंग की जाती है, जिसे थ्रेशर मशीन कहा जाता है। यह विधि ज्यादा प्रभावी होती है और बड़े पैमाने पर उपयोग की जाती है। इससे समय और श्रम दोनों की बचत होती है।

उदाहरण:

  • धान की थ्रेशिंग: धान की कटाई के बाद उसकी बालियों को पीटकर या मशीन से अनाज अलग किया जाता है।
  • गेहूं की थ्रेशिंग: गेहूं की बालियों से अनाज को अलग करने के लिए थ्रेशर मशीन का उपयोग किया जाता है।

थ्रेशिंग का महत्व: – 

    • यह फसल कटाई का एक आवश्यक चरण है।
    • इससे अनाज को पौधे के अन्य हिस्सों से अलग करके उसका भंडारण और उपयोग करना आसान हो जाता है।

3. निष्पावन :-  

निष्पावन का उपयोग पवनों अथवा वायु के झोंकों द्वारा मिश्रण से भारी तथा हल्के अवयवों को पृथक करने में किया जाता है । साधारणतया किसान इस विधि का उपयोग हल्के भूसे को भारी अन्नकणों से पृथक करने के लिए करते हैं । 

4. चालन :- 

चालन विधि का उपयोग मिश्रण के दो ऐसे अवयवों, जिनकी आमपों में अंतर हो, को पृथक करने में किया जाता है । 

5. अवसादन, निस्तारण तथा निस्यंदन :- 

a. अवसादन –

जब मिश्रण में जल मिलने पर भारी अवयवों के नीचे तली में बैठ जाने के प्रक्रम को अवसादन कहते हैं । उदाहरण  – जब जल और मिट्टी का मिश्रण छोड़ दिया जाता है, तो भारी मिट्टी के कण धीरे-धीरे नीचे बैठ जाते हैं और जल ऊपर साफ हो जाता है। अवसादन प्रक्रिया का उपयोग जल शोधन, खनिज प्रक्रमण, और कई औद्योगिक प्रक्रियाओं में किया जाता है।

b. निस्तारण

निस्तारण (Decantation) एक ऐसी विधि है जिसमें ठोस-तरल या तरल-तरल मिश्रण से अवांछित ठोस या तरल को अलग किया जाता है, जबकि शेष तरल को सावधानीपूर्वक निकाल लिया जाता है। यह प्रक्रिया तब उपयोग की जाती है जब मिश्रण में ठोस कण तलहटी में बैठ चुके हों या दो अप्रमेय (immiscible) तरल एक-दूसरे से अलग हो गए हों।

निस्तारण प्रक्रिया के चरण:

  1. मिश्रण तैयार करना: मिश्रण को कुछ समय के लिए छोड़ दिया जाता है ताकि ठोस कण या भारी तरल तल में बैठ जाए।
  2. तरल निकालना: ऊपरी साफ तरल को सावधानीपूर्वक एक अलग पात्र में डाला जाता है, जिससे तलहटी में बैठे ठोस कण या घना तरल पीछे रह जाता है।
उदाहरण: – 
  1. ठोस-तरल मिश्रण: अगर मिट्टी और पानी का मिश्रण बनाया जाए, तो मिट्टी नीचे बैठ जाती है, और ऊपर से पानी को निस्तारण विधि द्वारा अलग किया जा सकता है।

  2. तरल-तरल मिश्रण: अगर तेल और पानी का मिश्रण हो, तो तेल पानी की सतह पर तैरता है और उसे निस्तारण द्वारा आसानी से हटाया जा सकता है।

c. निस्यंदन :- 

निस्यंदन (Filtration) एक प्रक्रिया है जिसमें ठोस-तरल या ठोस-गैस मिश्रण से ठोस कणों को हटाने के लिए निस्यंदक (filter) का उपयोग किया जाता है। इस विधि का उपयोग उन मिश्रणों को अलग करने के लिए किया जाता है जिनमें ठोस कण घुलनशील नहीं होते और तरल या गैस में निलंबित होते हैं।

निस्यंदन की प्रक्रिया:

  1. मिश्रण तैयार करना: ठोस-तरल या ठोस-गैस मिश्रण को निस्यंदन के लिए तैयार किया जाता है।
  2. निस्यंदक का उपयोग: मिश्रण को निस्यंदक कागज (filter paper) या किसी अन्य निस्यंदक माध्यम से गुजारा जाता है। निस्यंदक माध्यम छोटे छिद्रों वाला होता है जो ठोस कणों को रोक लेता है, जबकि तरल या गैस निस्यंदक से गुजर जाता है।
  3. फिल्ट्रेट और अवशेष: जो तरल या गैस निस्यंदक से गुजरता है उसे “फिल्ट्रेट” कहा जाता है, और जो ठोस कण निस्यंदक पर रह जाते हैं उन्हें “अवशेष” कहा जाता है।

निस्यंदन के उदाहरण:

  1. चाय छानना: जब चाय को कप में डालते समय छानते हैं, तो चायपत्ती निस्यंदक (छन्नी) में रह जाती है, जबकि तरल चाय कप में चली जाती है।

  2. जल शोधन: जल को साफ करने के लिए निस्यंदन का उपयोग किया जाता है, जिसमें पानी के भीतर उपस्थित ठोस अशुद्धियों को हटाया जाता है।

  3. प्रयोगशाला में: रसायन विज्ञान में निस्यंदन का उपयोग ठोस और तरल के मिश्रण से ठोस पदार्थों को अलग करने के लिए किया जाता है।

नोट :- फ़िल्टर पत्र एक ऐसा निस्यंदक होत है जिसमें अत्यंत सूक्ष्म छिद्र होते हैं । 

6. वाष्पन :-  

वाष्पन (Evaporation) पृथक्करण की एक सरल विधि है, जिसका उपयोग तब किया जाता है जब किसी घोल में ठोस पदार्थ घुला हुआ हो और उसे ठोस रूप में पृथक करना हो। वाष्पन विधि में घोल को गर्म किया जाता है ताकि घोल में उपस्थित विलायक (जैसे पानी) वाष्पीकृत हो जाए, और ठोस पदार्थ (जैसे नमक) बचा रह जाए।

वाष्पन की विधि:

  1. घोल का चयन: सबसे पहले उस घोल का चयन किया जाता है जिसमें ठोस पदार्थ घुला हुआ हो। जैसे नमक और पानी का घोल।

  2. गर्म करना: घोल को किसी बर्तन में डालकर उसे गर्म किया जाता है।

  3. विलायक का वाष्पीकरण: गर्म करने पर घोल में उपस्थित पानी (विलायक) वाष्पीकृत होने लगता है और बर्तन से उड़ जाता है।

  4. ठोस पदार्थ का शेष रहना: अंत में, जब सारा पानी वाष्पीकृत हो जाता है, तब घोल में घुला ठोस पदार्थ (जैसे नमक) बर्तन के तले में शेष रह जाता है।

वाष्पन विधि का उपयोग:

  • नमक के पानी से नमक निकालने के लिए।
  • चीनी के घोल से चीनी प्राप्त करने के लिए।
  • कच्चे खनिजों से धातुएं पृथक करने के लिए भी इस विधि का उपयोग किया जाता है।

जल को उसके वाष्प में परिवर्तन करने की प्रक्रिया को वाष्पन कहते हैं । जहाँ पर जल होत है वाष्पन की प्रक्रिया निरंतर होती रहती है । 

नोट :-  हमने पदार्थों को पृथक करने की कुछ विधियों के बारे में अध्ययन किया है। प्रायः किसी मिश्रण में उपस्थित विभिन्न अवयवों को पृथक करने में केवल एक विधि का उपयोग पर्याप्त नहीं होता हैं। ऐसी  स्थिति में हमें एक से अधिक विधियों का उपयोग करने की आवश्यकता होती है ।