class 6th science notes in Hindi4. पौधों को जानिए |
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Textbook | NCERT |
Class | Class – 6th |
Subject | SCIENCE |
Chapter | Chapter – 4 |
Chapter Name | पौधों को जानिए |
Medium | HINDI |
पौधों के भाग
शाक, झाड़ी एवं वृक्ष
शाक : – हरे एवं कोमल तने वाले पौधे शाक कहलाते हैं ये सामान्यतः छोटे होते हैं और अक्सर इनमें कोई शाखाएं नहीं होतीं हैं ।
नोट :- शाखाएं भूमि के पास ताने के आधार से अथवा कुछ ऊँचाई के बाद निकलती हैं ।
झाड़ी :- कुछ पौधों में शाखाएं तने के आधार के समीप से निकलती हैं । तना कठोर होता है परंतु अधिक मोटा नहीं होत । इन्हे झाड़ी कहते हैं ।
वृक्ष :- कुछ पौधे बहुत ऊँचे होते हैं तथा इनके तने सुदृढ़ एवं गहरे होते हैं । इनमें शाखाएं भूमि से आधिक ऊँचाई पर तने के ऊपरी भाग से निकलती हैं । इन्हे वृक्ष कहते हैं ।
लता
विसर्पी लता :- विसर्पी लता (creeping stem) उन पौधों को कहा जाता है जिनकी तने (स्टेम) धरती के सतह पर क्षैतिज रूप से फैलते हैं। ये पौधे अपनी जड़ों से मिट्टी में जकड़े रहते हैं और धीरे-धीरे चारों ओर फैलते हैं। विसर्पी लताओं में तना सीधा खड़ा नहीं हो पाता, बल्कि यह जमीन के सहारे रेंगता है। जैसे – कद्दू (pumpkin), खरबूजा (melon), तरबूजा (watermelon)इन पौधों की विशेषता यह होती है कि ये तने के सहारे जमीन पर फैलते हैं और इनमें से सहायक जड़ें भी निकलती रहती हैं, जिससे पौधे को मजबूती मिलती है।
आरोही लता : – आरोही लता (climbing stem) वे पौधे होते हैं जिनके तने पतले और कमजोर होते हैं, लेकिन वे किसी सहारे के बिना सीधा नहीं खड़े हो पाते। इस कारण ये पौधे किसी अन्य वस्तु, जैसे पेड़, दीवार या किसी अन्य संरचना के सहारे ऊपर की ओर चढ़ते हैं। आरोही लताओं में सहारे के लिए जड़ें, कांटे या कुंडल जैसी संरचनाएँ होती हैं, जो उन्हें ऊर्ध्व दिशा में बढ़ने में मदद करती हैं। जैसे – मनी प्लांट, अंगूर, कद्दू (जब इसे सहारा मिलता है) ये पौधे प्रकृति में ऊपर चढ़ने की क्षमता रखते हैं और अक्सर किसी ऊर्ध्वाधर सतह के साथ लिपटकर या सहारे से बढ़ते हैं।
तना
तना (Stem): – पौधे का मुख्य भाग होता है, जो जमीन के ऊपर बढ़ता है और पौधे को सहारा देता है। यह पौधे के विभिन्न अंगों को जोड़ने का कार्य करता है, जैसे जड़, पत्तियाँ, फूल और फल। तना जल का संवहन करता है।
तने के कार्य:-
- सहारा देना: तना पौधे को सीधा खड़ा रखता है और पत्तियों, फूलों, तथा फलों को सहारा देता है।
- पोषक तत्वों का परिवहन: तना जड़ों से पानी और खनिजों को पत्तियों तक पहुँचाता है और पत्तियों में तैयार भोजन को पूरे पौधे में वितरित करता है।
पत्ती
पत्ती (Leaf) पौधे का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होती है, जो प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis), श्वसन (respiration), और वाष्पोत्सर्जन (transpiration) जैसी प्रक्रियाओं में मुख्य भूमिका निभाती है। यह पौधे की “रसोई” कहलाती है क्योंकि इसमें सूर्य के प्रकाश की मदद से भोजन तैयार किया जाता है।
पत्ती के मुख्य कार्य:
- प्रकाश संश्लेषण:- पत्तियाँ सूर्य के प्रकाश, पानी और कार्बन डाइऑक्साइड की मदद से भोजन (ग्लूकोज) बनाती हैं। इस प्रक्रिया को प्रकाश संश्लेषण कहते हैं। इसमें पत्ती के भीतर मौजूद क्लोरोफिल (हरितलवक) की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
- श्वसन: – पत्तियाँ वातावरण से ऑक्सीजन लेकर और कार्बन डाइऑक्साइड छोड़कर श्वसन करती हैं। यह प्रक्रिया पौधे के जीवन के लिए आवश्यक ऊर्जा प्रदान करती है।
- वाष्पोत्सर्जन: – पत्तियों के माध्यम से पौधा अतिरिक्त पानी को वाष्प के रूप में वातावरण में छोड़ता है। इसे वाष्पोत्सर्जन कहते हैं, और यह प्रक्रिया पौधे के तापमान को नियंत्रित करने और पानी के परिवहन में मदद करती है।
पत्ती के मुख्य भाग:-
- पर्णफलक (Lamina): – यह पत्ती का चौड़ा और सपाट हिस्सा होता है, जिसमें प्रकाश संश्लेषण होता है।
- पेटीओल (Petiole)/ पर्णवृत :- यह पत्ती को तने से जोड़ने वाला डंठल होता है।
- मुख्य शिरा (Midrib): – यह पत्ती की केंद्रीय नस होती है, जो पत्ती को सहारा देती है और पोषक तत्वों का परिवहन करती है। इसे मध्य शिरा भी कहते हैं ।
- शिराएँ (Veins): – ये पत्ती की नसों का जाल होती हैं, जो पानी और पोषक तत्वों का वितरण करती हैं।
- शिरा – विन्यास : – पतियों पर शिराओं द्वारा बनाए गए डिजाइन को शिरा – विन्यास कहते हैं । ये दो प्रकार के होते हैं 1. जालिका रूपी शिरा – विन्यास :- मध्य शिरा के दोनों ओर जाल जैसा संरचना होता हैं ।, 2. संनान्तर शिरा – विन्यास :- पतियों में शिराएं एक दूसरे के संनान्तर होती हैं ।
जड़
जड़ (Root) पौधे का वह भाग होता है जो आमतौर पर मिट्टी के अंदर पाया जाता है और पौधे को आवश्यक पोषक तत्वों और पानी को ग्रहण करने में मदद करता है। जड़ पौधे को मिट्टी में मजबूती से पकड़ कर रखती है । इसलिए इन्हें मिट्टी में पौधों का स्थिरक कहा जाता हैं ।
पौधों के जड़े :-
1. मूसला जड़ :-
मूसला जड़ एक प्राथमिक जड़ होती है जो सीधे नीचे की ओर बढ़ती है और उससे छोटी-छोटी द्वितीयक जड़ें निकलती हैं। यह जड़ मुख्य रूप से द्विबीजपत्री पौधों (dicot plants) में पाई जाती है। मूसला जड़ पौधे के पोषण और जल अवशोषण में मुख्य भूमिका निभाती है, साथ ही इसे मिट्टी में मजबूती से पकड़ कर रखती है।
मुख्य विशेषताएँ: –
- एक मुख्य जड़, जो लंबवत नीचे की ओर बढ़ती है।
- इसमें से छोटी-छोटी द्वितीयक जड़ें निकलती हैं।
- यह जड़ गहरी होती है और लंबे समय तक पानी का भंडारण कर सकती है।
उदाहरण:-
- गाजर (Carrot)
- मूली (Radish)
- चुकंदर (Beetroot)
2. पशर्व जड़ :-
पशर्व जड़ें वे जड़ें होती हैं जो प्राथमिक जड़ के बढ़ने के बाद टूट जाती हैं और कई समान आकार की पतली जड़ें निकलती हैं। ये जड़ें एक जाल की तरह फैलती हैं और मिट्टी के ऊपरी हिस्से से जल और पोषक तत्वों को अवशोषित करती हैं। ये मुख्य रूप से एकबीजपत्री पौधों (monocot plants) में पाई जाती हैं।
मुख्य विशेषताएँ:-
- कई पतली और समान आकार की जड़ें।
- जड़ें मिट्टी में चारों ओर फैलती हैं और बहुत गहरी नहीं होतीं।
- ये जड़ें ऊपरी मिट्टी से पानी और पोषक तत्वों को जल्दी अवशोषित कर लेती हैं।
उदाहरण:-
- गेहूँ (Wheat)
- धान (Rice)
- मक्का (Maize)
अंतर: –
- मूसला जड़ गहरी और एक मुख्य जड़ के रूप में होती है, जबकि पशर्व जड़ पतली और जाल की तरह फैली होती है।
- मूसला जड़ द्विबीजपत्री पौधों में पाई जाती है, जबकि पशर्व जड़ मुख्य रूप से एकबीजपत्री पौधों में पाई जाती है।
जड़ के मुख्य कार्य: –
- जल और पोषक तत्वों का अवशोषण:- जड़ें मिट्टी से पानी और खनिजों को अवशोषित करती हैं, जो पौधे के विकास के लिए आवश्यक होते हैं।
- सहारा देना:- जड़ पौधे को मिट्टी में स्थिरता प्रदान करती है, जिससे वह सीधा खड़ा रह सके।
- भोजन का भंडारण:- कुछ पौधों की जड़ें भोजन का भंडारण करती हैं, जैसे गाजर, मूली, और शकरकंद में। यह भोजन पौधे की वृद्धि और पुनरुत्पादन में मदद करता है।
- गैसों का विनिमय: – कुछ जड़ों में वायवीय जड़ें होती हैं, जो वायु से ऑक्सीजन को अवशोषित करती हैं, विशेष रूप से उन पौधों में जो जलमग्न क्षेत्रों में रहते हैं।
जड़ का महत्व: –
- जल और पोषक तत्वों का अवशोषण: – जड़ें पौधे के लिए जीवनदायिनी होती हैं क्योंकि वे मिट्टी से आवश्यक तत्वों का अवशोषण करती हैं।
- मिट्टी को बाँधना: – जड़ें मिट्टी को बाँधकर कटाव रोकने में मदद करती हैं।
- भोजन का भंडारण: – जड़ें कई पौधों में भोजन का भंडारण करती हैं, जिससे उन्हें प्रतिकूल परिस्थितियों में भी जीवित रहने में मदद मिलती है।
जड़ पौधे का वह भाग है, जो उसे पोषक तत्वों और जल की आपूर्ति के साथ-साथ स्थायित्व प्रदान करता है, जिससे पौधा विकास और वृद्धि कर सकता है।
पुष्प
पुष्प (Flower) पौधे का प्रजनन अंग होता है, जो पौधे की यौन प्रजनन प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पुष्प पौधे का सबसे आकर्षक और रंगीन भाग होता है, और इसमें प्रजनन अंगों के साथ-साथ पंखुड़ियाँ, केसर, वर्तिका आदि होते हैं।
पुष्प के मुख्य भाग: –
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पुष्पदंड (Pedicel): यह वह डंठल होता है जिस पर पुष्प लगा होता है और इसे तने से जोड़ता है।
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वर्तिकाग्र (Stigma): यह मादा प्रजनन अंग का हिस्सा होता है, जो पराग कणों (pollen grains) को ग्रहण करता है।
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वर्तिकायुक्त स्त्रीकेसर (Carpel or Pistil): यह पुष्प का मादा प्रजनन अंग होता है, ये केंद्र में स्थित होती हैं, जिसमें तीन मुख्य भाग होते हैं:
- वर्तिकाग्र (Stigma): पराग ग्रहण करने वाला हिस्सा।
- वर्तिका (Style): यह वर्तिकाग्र को अंडाशय से जोड़ता है।
- अंडाशय (Ovary): इसमें अंडाणु (ovules) होते हैं, जो परागण के बाद बीज में परिवर्तित होते हैं। यह स्त्रीकेसर का सबसे निचला एवं फूल हुआ भाग है।
- बीजांड – अंडाशय के अंदर छोटी – छोटी गोल संरचनाएं होते हैं जिन्हे बीजांड कहते हैं ।
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केसर (Stamen): यह पुष्प का नर प्रजनन अंग होता है, जिसमें दो मुख्य भाग होते हैं:
- पुंकेसर (Anther): इसमें पराग कण (pollen grains) होते हैं, जो नर युग्मक होते हैं। इसके दो भाग होते हैं – पराग कोश और तन्तु ।
- केसर का डंठल (Filament): यह पुंकेसर को सहारा देता है और इसे ऊँचा रखता है ताकि परागण आसानी से हो सके।
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पंखुड़ियाँ (Petals): यह पुष्प का सबसे रंगीन और आकर्षक हिस्सा होता है, जो कीटों और पक्षियों को आकर्षित करने के लिए होता है ताकि परागण हो सके। पंखुड़ियाँ मिलकर पुष्पमंडल (Corolla) बनाती हैं।
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दल (Sepals): यह पुष्प का हरा हिस्सा होता है, जो कलि अवस्था में पुष्प को सुरक्षा प्रदान करता है। सभी दल मिलकर दलपुंज (Calyx) बनाते हैं।
पुष्प के मुख्य कार्य:
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प्रजनन: पुष्प का मुख्य कार्य पौधे के प्रजनन में होता है। यह परागण (pollination) और निषेचन (fertilization) की प्रक्रिया में सहायता करते है, जिससे नए बीज और फल बनते हैं।
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परागण (Pollination): पुष्प की संरचना कीटों, पक्षियों, वायु आदि के माध्यम से परागण को सुनिश्चित करती है, जिसमें नर पराग कण मादा वर्तिकाग्र पर स्थानांतरित होते हैं।
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फलों और बीजों का निर्माण: निषेचन के बाद अंडाशय फल में और अंडाणु बीज में परिवर्तित हो जाते हैं।
नोट :- सभी पुष्पों की संरचना सदैव एक जैसी नहीं होती । विभिन्न पुष्पों में बाह्यदल, पंखुड़ी, पुंकेसर एवं स्त्रीकेसर की संख्या में अंतर हो सकता है। कुछ पुष्पों में इनमें से कुछ भाग अनुपस्थित भी हो सकते हैं ।